گلشن میں کوئی پھر کلِ تازہ کھلا ہے آج
مہکی ہوئی فضاؤں میں بوئے وفاہے آج
جو عاشقِ عباسؑ ہیں سب جھوم رہے ہیں
ہر سو رواں ہوائے خمارِ وفا ہے آج
شه اس لیے ہیں خوش کہ علمدار آ گیا
نقشہ سپاہِ شه کا مکمل ہوا ہے آج
مانگی تھی جو علی نے علی سے اٹھا کے ہاتھ
آغوش شه میں صورتِ غازی دعا ہے آج
معجز نما کا معجزہ معجز یہی تو ہے
اِک بے ہنر کے لب پہ جری کی ثنا ہے آج
गुलशन में फिर कोई गुले ताज़ा खिला है आज
महकी हुई फ़ज़ाओं में बू ए वफा है आज
शह इसलिए है खुश कि अलमदार आ गया
नक्शा सिपाहे शह का मुकम्मल हुआ है आज
मांगी थी जो अली ने अली से उठा के हाथ
आगोशे शह में सूरते गाज़ी दुआ है आज
अब्बास के खुले हुए परचम के बदौलत
हर सू रवां हवाये खुमारे वफा है आज
जिस तरह मुर्तजा थे मोहम्मद की गोद में
आगोशे शाहे दीं में बिने मुर्तजा है आज
मोजिजनुमा का मोजिजा मोजिज यही तो है
इक बे हुनर के लब पा जरी की सना है आज

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